
Wednesday, May 30, 2012
Tuesday, May 29, 2012
Where contentiousness prevails, ignorance and Maya abound. There is no thought of deliverance and the mind is continually engaged in malicious, misconceived speculation. Such one is not worthy of self-knowledge. He is engulfed by ignorance alone. He can enjoy happiness neither on earth nor in heaven. Everywhere and at all times he is unhappy.
Thursday, May 24, 2012
Wednesday, May 23, 2012
श्री सदगुरु साइनाथ के ग्यारह वचन
शिर्डी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई ।
तत्क्षण मिट जाएंगे कष्ट उसके, हो जो भी कोई || १ ||
चढे़गा जो मेरी समाधी की सीढी ।
मिटेगा उसका दुःख और चिंताएँ सारी || २ ||
गया छोड़ इस देह को फिर भी ।
दौड़ा आऊंगा निजभक्त हेतु || ३ ||
मनोकामना पूर्ण करे यह मेरी समाधि ।
रखो इस पर विश्वास और द्रढ़ बुद्धि || ४ ||
नित्य हूँ जीवित मैं, जानो यहाँ सत्य ।
कर लो प्रचीति, स्वंय के अनुभव से || ५ ||
मेरी शरण मैं आके कोई गया हो खाली ।
ऐसा मुझे बता दे, कोई भी एक सवाली || ६ ||
भजेगा मुझको जो भी जिस भावः से ।
पायेगा मुजको वह उसी भाव से || ७ ||
तुम्हारा सब भार उठाँऊंगा मैं सर्वथा ।
नहीं इसमें संशय, यह वचन है मेरा || ८ ||
मिलेगी सहाय यहाँ सबको ही जानो ।
मिलेगा उसको वही, जो भी मांगो || ९ ||
हो गया जो तन मन वचन से मेरा ।
ऋणी हूँ में उसका सदा-सर्वथा ही || १० ||
कहे साई वही हुआ धन्य-धन्य ।
हुआ जो मेरे चरणों से अनन्य || ११ ||
तत्क्षण मिट जाएंगे कष्ट उसके, हो जो भी कोई || १ ||
चढे़गा जो मेरी समाधी की सीढी ।
मिटेगा उसका दुःख और चिंताएँ सारी || २ ||
गया छोड़ इस देह को फिर भी ।
दौड़ा आऊंगा निजभक्त हेतु || ३ ||
मनोकामना पूर्ण करे यह मेरी समाधि ।
रखो इस पर विश्वास और द्रढ़ बुद्धि || ४ ||
नित्य हूँ जीवित मैं, जानो यहाँ सत्य ।
कर लो प्रचीति, स्वंय के अनुभव से || ५ ||
मेरी शरण मैं आके कोई गया हो खाली ।
ऐसा मुझे बता दे, कोई भी एक सवाली || ६ ||
भजेगा मुझको जो भी जिस भावः से ।
पायेगा मुजको वह उसी भाव से || ७ ||
तुम्हारा सब भार उठाँऊंगा मैं सर्वथा ।
नहीं इसमें संशय, यह वचन है मेरा || ८ ||
मिलेगी सहाय यहाँ सबको ही जानो ।
मिलेगा उसको वही, जो भी मांगो || ९ ||
हो गया जो तन मन वचन से मेरा ।
ऋणी हूँ में उसका सदा-सर्वथा ही || १० ||
कहे साई वही हुआ धन्य-धन्य ।
हुआ जो मेरे चरणों से अनन्य || ११ ||
Tuesday, May 22, 2012
Friday, May 18, 2012
jai sai ram
अनंता तुला तें कसें रे ःतवावें । अनंता तुला तें कसें रे नमावें ।
अनंत मुखांचा िशणे शेष गातां । नमःकार साष्टांग ौी साईनाथा ।। 1 ।।
ःमरावें मनीं त्वत्पदां िनत्य भावें । उरावें तरी भिक्तसाठीं ःवभावें ।।
तरावें जगा तारुनी मायताता । नमःकार साष्टांग ौी साईनाथा ।। 2 ।।
वसे जो सदा दावया संतलीला । िदसे अज्ञ लोकांपरी जो जनांला ।।
परी अंतरीं ज्ञान कवल्यदाता । नमःकार साष्टांग ौी साईनाथा ।। 3 ।।
बरा लाधला जन्म हा मानवाचा । नरा साथर्का साधनीभूत साचा ।।
धरुं साइूेमा गळाया अहं ता । नमःकार ।। 4 ।।
धरावें करीं सान अल्पज्ञ बाला । करावें अम्हां धन्य चुंबोिन गाला ।।
मुखीं घाल ूेमें करा मास आतां । नमःकार ।। 5 ।।
सुरादीक ज्यांच्या पदा वंिदताती । शुकादीक जयांतें समान्तव दे ती ।।
ूयागािद तीथेर्ं पदीं नॆ होतां ।। नमःकार ।। 6 ।।
तुझ्या ज्यां पदा पाहतां गोपबाली । सदा रं गली िचत्वःवरुपीं िमळाली ।।
करी रास बीडा सवें कृ ंणनाथा । नमःकार ।। 7 ।।
तुला मागतों मागणें एक घावें । करा जोिड़तों दीन अत्यंत भावें ।।
भवीं मोहनीराज हा तािर आतां । नमःकार साष्टांग ौी साइनाथा ।। 8 ।।
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